रौशन गुप्ता गोविंदपुर नवादा
ककोलत जलप्रपात जिसे बिहार का कश्मीर कहा जाता है, हर वर्ष 14 अप्रैल को 'बिसुआ मेला' (या 'सतुआनी मेला') के अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह मेला तीन दिनों तक चलता है और इसमें स्नान, पूजा-अर्चना, सांस्कृतिक कार्यक्रम और पारंपरिक भोज का आयोजन होता है।
बिसुआ मेला 2025 की स्थिति
हालांकि, 2025 में ककोलत में बिसुआ मेला आयोजित नहीं किया गया। स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा कारणों से इस वर्ष मेले को स्थगित करने का निर्णय लिया। लेकिन श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भीड़ बढ़ती जा रही है। यहां तक कि पार्किंग स्थल छोटी पड़ती जा रही है। इससे पहले 2022 में भी मेले की सरकारी तैयारी नहीं की गई थी, लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक ककोलत पहुंचे थे ।उसके साथ ही 14 अप्रैल को श्रद्धा और सम्मान के साथ डॉ भीम राव अंबेडकर जयंती भी ककोलत में मनाया गया।जिसमें यमुना पासवान,धर्मेंद्र पासवान, सुरेश पासवान,रोहित कुमार,सकलदेव पासवान सहित अन्य लोगों ने भी स्मृति पर माल्यार्पण किया।
मेले का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
बिसुआ मेला का धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि इस दिन ककोलत जलप्रपात में स्नान करने से सर्प और गिरगिट योनि से मुक्ति मिलती है। नवविवाहित जोड़े इस दिन स्नान कर सौभाग्य की कामना करते हैं। स्नान के बाद 'सत्तू' का सेवन करना परंपरा का हिस्सा है।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
स्थानीय लोगों और पर्यटकों ने मेले के स्थगन पर निराशा व्यक्त की है। वे चाहते हैं कि प्रशासन भविष्य में इस मेले को पुनः आयोजित करे, ताकि ककोलत की सांस्कृतिक धरोहर और पर्यटन को बढ़ावा मिल सके।